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आईवीएफ के साइड इफेक्ट और जोखिम

| 04 Mar 2022 | 4380 Views |

निसंतान दंपतियों के लिए आईवीएफ का ट्रीटमेंट एक वरदान जैसा साबित हुआ है! परंतु कहते हैं कि हर चीज में कुछ अच्छाई के साथ-साथ उसके कुछ नुकसान भी होते हैं इसी प्रकार आईवीएफ के ट्रीटमेंट में कुछ साइड इफेक्ट भी देखने को मिलते हैं। जो महिलाएं नेचुरल तरीके से गर्भधारण करने में असक्षम होती हैं वह आईवीएफ ट्रीटमेंट की सहायता से गर्भ धारण कर मां बन सकती हैं। आई वी एफ का पूरा नाम इन विट्रो फर्टिलाइजेशन है यह एक रिप्रोडक्टिव तकनीकी है। इस रिप्रोडक्टिव तकनीकी के माध्यम से महिला की ओवरी से egg को निकालकर उसे स्पर्म के साथ फर्टिलाइज किया जाता है इसके उपरांत एंब्रियो को गर्भाशय में पुनः प्रवेश किया जाता है।

आइए अब चर्चा करते हैं आईवीएफ के साइड इफेक्ट के बारे में

एक से अधिक शिशु का जन्म –
यदि आप आईवीएफ के ट्रीटमेंट से संतान प्राप्ति के लिए प्रयास कर रहे हैं तो भ्रूण प्रत्यारोपित हो जाने की स्थिति में एक से अधिक संतान को जन्म देने की पूर्ण संभावनाएं बन जाती हैं। इसके अलावा एक और भी साइड इफेक्ट यह है कि सामान्य गर्भधारण की तुलना में अर्ली लेबर होने के अधिक चांस होते हैं।

गर्भपात का डर बना रहना –
आईवीएफ की कृतिम पद्धति में जब कोई महिला प्रथम बार आईवीएफ का सहारा लेती है तो प्रेग्नेंट होने के बाद उसे कुछ हद तक गर्भपात का खतरा बना रहता है। परंतु इस बात का खंडन एक शोध में हो चुका है। रिसर्च के अनुसार IVF से गर्भपात का खतरा उन महिलाओं में बराबर ही होता है जो कि naturally गर्भ धारण करती हैं। इसलिए इस प्रकार के साइड इफेक्ट के बारे में बात करना गलत साबित हुआ। आईवीएफ के बढ़ते प्रचलन के कारण इसके साइड इफेक्ट होना एक सामान्य सी बात है परंतु गर्भपात को लेकर आईवीएफ के साइड इफेक्ट ना के बराबर है।

एग रिट्रीवर प्रोसीजर कॉम्प्लिकेशंस –
आईवीएफ की प्रक्रिया में अंड़ो को एकत्रित करने के लिए एक नीडल का प्रयोग किया जाता है जिसके कारण ब्लीडिंग, इंफेक्शन, आंत, ब्लैडर या ब्लड सेल्स को नुकसान होने की संभावना बनी रहती है। आईवीएफ की प्रक्रिया में एक यह साइड इफेक्ट है जो की बहुत ही कम है इसकी वजह से ब्लड सेल्स को काफी नुकसान पहुंचता है जबकि ऐसा बिल्कुल भी नहीं है।

जन्मजात दोष –
अधिकांश लोगों में इस बात को लेकर भी अत्यधिक चर्चा बनी रहती है कि जो बच्चे आईवीएफ की प्रक्रिया से पैदा होते हैं उनमें जन्मजात दोष होने का खतरा बना रहता है। जबकि यह मिथ्या है।

कुछ लोगों का मानना यह भी होता है कि जो बच्चे आईवीएफ की सहायता से जन्मे है उनमें बाई बर्थ, किसी शारीरिक अपंगता होने के चांस अधिक होते हैं परंतु ऐसा कुछ भी नहीं है। साइड इफेक्ट के बारे में एक और मिथ्या है कि जो बच्चे आईवीएफ प्रक्रिया की मदद से जन्म लेते हैं उनमें जन्मजात कोई ना कोई समस्या बनी रहती है परंतु एक सर्वे में वैज्ञानिकों ने दावा करके इस बात को नकार दिया है।

दस्त और उल्टी होने की समस्या –
आईवीएफ की प्रक्रिया में गर्भधारण के दौरान योनि के अंदर मेडिसिन को इंजेक्शन के द्वारा डाला जाता है। यह इंजेक्शन अधिक पीड़ा दायक होते हैं जिसके द्वारा महिलाओं को दस्त तथा उल्टी जैसी समस्या हो सकती है कभी-कभी इंजेक्शन के बाद उस जगह पर स्वेलिंग भी देखने को मिलती है यदि ऐसा होता है तो उस जगह को बर्फ के द्वारा सीख सकते हैं जिससे इस इंजेक्शन के द्वारा जो दर्द होता है उसमें राहत मिल जाती है।

एक्टोपिक प्रेगनेंसी –
हाल ही में हुए एक सर्वे के अनुसार आईवीएफ प्रक्रिया से जो महिलाएं गर्भधारण करती हैं उनमें 3% से 6% एक्टोपिक प्रेगनेंसी होने की संभावना बनी रहती है। जब किसी महिला की नेचुरल प्रेगनेंसी होती है उसमें अंडे फैलोपियन ट्यूब में शुक्राणुओं द्वारा Fertilized हो जाते हैं फिर यह गर्भाशय में नीचे की ओर चले जाते हैं। परंतु आईवीएफ की प्रक्रिया में निश्चित अंडों को गर्भाशय में स्थापित किया जाता है जिससे निषेचित अंडे फैलोपियन ट्यूब में स्थापित हो सकते हैं जिससे
एक्टोपिक प्रेगनेंसी होने की संभावना बन जाती है ऐसी अवस्था में निषेचित अंडा गर्भाशय के बाहर ही सरवाइव नहीं कर पाता है जोकि आईवीएफ का एक बड़ा साइड इफेक्ट माना जाता है।

इमोशनल इंबैलेंस –

महिलाएं जब आईवीएफ की प्रक्रिया से गुजरती हैं तो उनका जीवन काफी तनावपूर्ण और शारीरिक रूप से थकाने वाला होता है। महिलाओं के जीवन में भावनाओं का उतार-चढ़ाव हॉस्पिटल के बार-बार चक्कर लगाना हार्मोन का उच्च स्तर और मेडिकेशंस के प्रोटोकॉल को फॉलो करना महिलाओं में इमोशनल इंबैलेंस उत्पन्न करता है। आईवीएफ की प्रक्रिया में सम्मिलित यह बदलाव आसानी से रिश्तो में काफी समस्याएं उत्पन्न कर सकते हैं। ऐसे समय में गर्भवती स्त्री का ख्याल रखना उसको सपोर्ट करना परिवार की एक बहुत ही महत्वपूर्ण  जिम्मेदारी होती है ऐसे समय में रिश्तेदारों को दोस्तों को और परिवार के लोगों का पर्याप्त सहयोग मिलना बहुत ही आवश्यक है।

चिंता –
महिलाएं जितना नि:संतानता की वजह से चिंतित रहती हैं उतना ही आईवीएफ अर्थात इन विट्रो फर्टिलाइजेशन के कारण चिंतित हो जाती हैं, क्योंकि आईवीएफ की प्रक्रिया में महिलाओं को नियमित रूप से डॉक्टर से मिलना और इस आईवीएफ प्रक्रिया में काफी इंजेक्शन दिए जाते हैं जो कि महिलाओं के दिमाग में एक नेगेटिव इंपैक्ट डालते हैं। जो महिलाएं आईवीएफ के द्वारा गर्भवती होती हैं वह उपचार के दौरान मिलने वाले नेगेटिव प्रभाव के कारण अपने आपको काफी चिंता की ओर धकेल देती हैं और खुद को चिंतित महसूस करते हैं जो कि बाद में एक गंभीर चिंता का विषय बन जाता है। जो महिलाएं आईवीएफ की प्रक्रिया से गुजरती हैं उन्हें एक लंबी प्रोसेस के द्वारा इसे अपनाना होता है जिसके कारण कई बार कपल्स एक एग्जॉइटी का शिकार हो जाते हैं।

एक ओर जहां पर आईवीएफ के द्वारा साइड इफेक्ट देखने को मिलते हैं वहीं दूसरी ओर बहुत सारे कपल एवं निःसंतान दंपतियों को माता पिता बनने की तमन्ना पूरी करते हुए शिशु को जन्म भी देते हैं।

यदि आप भी बिना संतान हैं और फर्टिलिटी के बारे में विचार कर रही हैं तो आपको इंडिया आईवीएफ में उपलब्ध आईवीएफ सेवाओं के बारे में जरूर संपर्क करें। आईवीएफ के साइड इफेक्ट हैं परंतु जो माता पिता को पैरंट्स बनने का सुख चाहिए वह इसके बावजूद भी इस विकल्प को अवश्य चुनते हैं और सफल भी होते हैं। इंडिया आईवीएफ के डॉक्टर निःसंतान दंपतियों को आईवीएफ के इलाज और इसके बारे में सलाह देते हैं तो अगर आप भी आईवीएफ की प्रोसेस से प्रेगनेंसी की राह चुनना चाहते हैं तो हमारे इंडिया आईवीएफ डॉक्टरों से परामर्श अवश्य करें।

About The Author
Dr. Richika Sahay

MBBS (Gold Medalist), DNB (Obst & Gyne), MNAMS, MRCOG (London-UK), Fellow IVF, Fellow MAS, Infertility (IVF) Specialist & Gynae Laparoscopic surgeon,[Ex AIIMS & Sir Gangaram Hospital, New Delhi]. Read more about me

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