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माता-पिता बनने का सपना हर किसी का होता है, लेकिन हर किसी के लिए ये सफर आसान नहीं होता। कई कपल्स को मां बनने की खुशी पाने के लिए आईवीएफ (इन विट्रो फर्टिलाइजेशन) का सहारा लेना पड़ता है।
आईवीएफ एक जटिल चिकित्सा प्रक्रिया है जिसमें कई भावनात्मक, आर्थिक और सामाजिक उतार-चढ़ाव आते हैं। आइए, एक मरीज की नजर से आईवीएफ के सफर को देखें।
आईवीएफ का फैसला लेना अपने आप में एक भावनात्मक उथलपुथल है। मरीजों को कई उम्मीदें, निराशाएं, खुशियां और गम एक साथ महसूस हो सकते हैं। असफल चक्रों का सामना करना मुश्किल होता है, मगर हार नहीं माननी चाहिए।
एक अध्ययन के अनुसार, आईवीएफ से गुजरने वाली महिलाओं में अवसाद और चिंता का खतरा बढ़ जाता है इसलिए, भावनात्मक सहारे की बहुत अहमियत होती है।
आईवीएफ एक महंगी प्रक्रिया है। दवाइयां, इंजेक्शन, प्रक्रियाओं और टेस्टों का खर्च काफी होता है। हर किसी के लिए ये खर्च वहन करना संभव नहीं हो पाता। कुछ कपल्स को इलाज के लिए लोन लेना पड़ सकता है, जिससे आर्थिक बोझ बढ़ जाता है।
समाज में बांझपन को लेकर कई तरह के मिथक और भ्रांतियां फैली हुई हैं। कई बार मरीजों को रिश्तेदारों और आस-पड़ोसियों से ताने सुनने पड़ते हैं, जिससे उनका आत्मविश्वास कमजोर होता है।
आईवीएफ का सफर कपल के रिश्ते को मजबूत भी बना सकता है और कमजोर भी। इलाज के दौरान होने वाले तनाव और भावनात्मक उथलपुथल से रिश्ते में दरार पड़ सकती है। इसलिए, पार्टनर को एक-दूसरे का सहारा बनना चाहिए, खुलकर बातचीत करनी चाहिए और भावनाओं को समझना चाहिए।
समाज में आईवीएफ को लेकर अभी भी जागरूकता की कमी है। कई लोग आईवीएफ को एक अस्वाभाविक प्रक्रिया मानते हैं। इस तरह की सोच से मरीजों को काफी तकलीफ होती है। जरूरी है कि समाज में आईवीएफ के बारे में सकारात्मक सोच पैदा की जाए।
आईवीएफ एक शारीरिक रूप से थका देने वाली प्रक्रिया है। दवाओं के साइड इफेक्ट्स, इंजेक्शन लगवाना और बार-बार टेस्ट करवाना शारीरिक परेशानी का कारण बनता है। साथ ही, असफल चक्रों का सामना करना मानसिक आघात पहुंचा सकता है।
आईवीएफ का सफर आसान नहीं होता, लेकिन यह असंभव भी नहीं है। सही मार्गदर्शन और सपोर्ट सिस्टम के साथ आप इस सफर को पार कर सकते हैं और अपने माता-पिता बनने के सपने को पूरा कर सकते हैं।
भारत आईवीएफ फर्टिलिटी में अनुभवी डॉक्टरों और देखभाल करने वाली टीम मौजूद है, जो हर कदम पर आपका साथ देंगे। हमारी दिल्ली, गुड़गांव, नोएडा, श्रीनगर, ग्वालियर और गाजियाबाद स्थित क्लिनिक्स में हम विश्वस्तर पर नवीनतम तकनीकों का इस्तेमाल करते हैं। आप संपर्क करें और निःसंकोच अपनी समस्या (samasya – problem) पूछें। हम आपका मार्गदर्शन करने और आईवीएफ प्रक्रिया को यथासंभव सहज बनाने में मदद करने के लिए हमेशा तैयार हैं।
आइए, मिलकर आपके सपनों को साकार करें!
आईवीएफ का सहारा लेने का फैसला हर कपल को अपने डॉक्टर से सलाह करके लेना चाहिए। डॉक्टर आपकी मेडिकल हिस्ट्री के आधार पर आपको सही सलाह दे सकते हैं।
आईवीएफ की सफलता दर कई कारकों पर निर्भर करती है, जैसे उम्र, बांझपन का कारण, और पिछले चक्रों का इतिहास। भारत आईवीएफ फर्टिलिटी में अनुभवी डॉक्टर हर कपल को व्यक्तिगत रूप से देखते हैं और उनकी सफलता की संभावनाओं को बढ़ाने के लिए इलाज की योजना बनाते हैं।
आमतौर पर, आईवीएफ का एक चक्र पूरा होने में 4-6 सप्ताह लगते हैं। इसमें दवाएं लेना, अंडा निकालना, निषेचन और भ्रूण स्थानांतरण शामिल होता है। जरूरी नहीं कि हर किसी के लिए पहला चक्र ही सफल हो। कुछ मामलों में सफलता के लिए दोहराने की जरूरत पड़ सकती है।
हर मेडिकल प्रक्रिया की तरह, आईवीएफ से भी कुछ जोखिम जुड़े होते हैं। इनके बारे में अपने डॉक्टर से विस्तार से बात कर लें। भारत आईवीएफ फर्टिलिटी में मरीजों की सुरक्षा का सबसे ज्यादा ख्याल रखा जाता है।
आईवीएफ का खर्च कई कारकों पर निर्भर करता है, जैसे दवाइयां, इस्तेमाल की जाने वाली टेक्नॉलजी आदि। भारत आईवीएफ फर्टिलिटी विभिन्न पैकेज विकल्प प्रदान करता है ताकि अधिक से अधिक लोगों को आईवीएफ का लाभ मिल सके। आप हमारी वेबसाइट पर जाकर (fèi - cost) के बारे में अधिक जानकारी प्राप्त कर सकते हैं।
आईवीएफ एक जटिल प्रक्रिया है और इसकी सफलता की गारंटी नहीं दी जा सकती। लेकिन भारत आईवीएफ फर्टिलिटी में नवीनतम तकनीकों और अनुभवी डॉक्टरों की मदद से सफलता की दर को बढ़ाने का प्रयास किया जाता है।
जी हां, पुरुष साथी को भी आईवी
जी हां, पुरुष साथी को भी आईवीएफ प्रक्रिया में शामिल होना जरूरी है। शुक्राणुओं की जांच की जाती है और यह देखा जाता है कि वे निषेचन के लिए उपयुक्त हैं या नहीं।
स्वस्थ जीवनशैली अपनाना, संतुलित आहार लेना, धूम्रपान और शराब से परहेज करना जरूरी है। साथ ही डॉक्टर द्वारा बताई गई दवाइयों का नियमित रूप से सेवन करना चाहिए।
भ्रूण स्थानांतरण के बाद हल्का आराम करने की सलाह दी जाती है, लेकिन जरूरी नहीं है कि आप पूरे दिन बिस्तर पर ही रहें। नियमित गतिविधियां जारी रखी जा सकती हैं, बस भारी चीजें उठाने से बचना चाहिए।
असफल चक्र निराशाजनक हो सकता है, लेकिन हिम्मत न हारें। अपने डॉक्टर से बात करें और अगले चरणों के बारे में सलाह लें। कभी-कभी दवाओं या प्रक्रिया में थोड़ा बदलाव करने से सफलता की संभावना बढ़ सकती है।
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